कविता - अपने-अपने एकलव्य - शरद चन्द्र श्रीवास्तव
कविता - अपने-अपने एकलव्य - शरद चन्द्र श्रीवास्तव अपने-अपने एकलव्य हर युग में, देनी होती है परीक्षा, हर युग के अपने अपने एकलव्य होते हैं, एक द्रोणाचार्य, किसी युग मे होता भी नही, आस्था हर युग में, अंधी रही है, वरना, सियासत के तोरणद्वार, यूँ ही नही करते, एकलव्य के अंगूठे की प्रतीक्षा…