लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता - जन्मतिथि : 03.01.1983 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी., काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी संप्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज प्रकाशित कृति : 'जिसे वे बचा देखना चाहते हैं' काव्य संग्रह (2015)
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जिंदगी के खिलाफ़, जिंदगी में
यह जरूरी नहीं
कि जिंदगी के खिलाफ होने का सबूत
मरकर ही दिया जाए
मैं, ऐसे कइयों को जानता हूँ
जिन्होंने इस अदावत को
जीते जी अंजाम दिया
अब इस उजले-काले बालों वाली
अम्मा को ही देख लीजिए
सड़क के बीचों-बीच
जीने भर की चीजों के साथ
(जिसमें एक प्लास्टिक की कुर्सी भी शामिल है)
जेठ की दुपहरी
माघ का पाला
बगैर कुछ बोले हुए काट रही है
ऐसे समय में
जब कीड़ों की तरह कुचले जा रहे हों
सड़क किनारे सोने वाले लोग
कोई भला साहस कर सकता है
सड़क के बीचों-बीच
गहरी नींद में जाने का
और, यह अम्मा हर रात यही तो करती है
आप कह सकते हैं
कि यह सड़क और मौत के बीच
कोई दीवर बना रही हो
और इस तरह भी
जिंदगी की धज्जियाँ उड़ा रही हो
जो इसे बरसों से जानते हैं
वो बताते हैं
कि अच्छा खासा घर था इसका
वैसे तो अब भी है
किंतु, दीवारों और छतों से ही
घर, घर नहीं कहलाता
और यह अम्मा इस तरह के
घर के खिलाफ़ है
कहते हैं पति के बाद भी
उसने सँभाले रखा
छतों के भार को सालों साल
अपने कंधों पर
लेकिन, जिस दिन
उसका जवान बेटा
उसकी आँखों के सामने चला गया
हमेशा-हमेशा के लिए
उसी दिन से
वो घर, घर नहीं रहा
वह, आज भी उसी सड़क के बीचों-बीच है
जहाँ से लौटेगा उसका बेटा
और वह दीवारों और छतों को
कहेगी अपना घर
अभी तो दीवारों और छतों के बगैर
वह जिंदगी में है,
जिंदगी के खिलाफ़!
(इस अम्मा से आप बलरामपुर हाऊस और मम्मफोर्डगंज के
बीच वाली सड़क पर मिल सकते हैं।)
सम्पर्क : ग्राम-बिशम्भरपुर, पोस्ट - मेहसी, जिला-पूर्वी चंपारण-845426, बिहार
मो.नं. : 9455107472 6306659027