अनिता रश्मि - दोआबा संपादक -जाबिर हुसेन) नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, काव्यम, घर सहित पत्र- पत्रिकाओं में कविताएँहंस, ज्ञानोदय, जनसत्ता, समकालीन भारतीय साहित्य, कथाक्रम, वागर्थ आदि में कहानियों के साथ अन्य विधा की रचनाएँचंद पुस्तकें प्रकाशित। सामयिक प्रकाशन से उपन्यास, साहित्य अकादमी के साझा कहानी संकलन 'झारखंड कथा परिवेश' में एक कहानी
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कविता - पिता - अनिता रश्मि
पिता
पिता नहीं थे ऐसे
अन्य पिता के बने-बनाए खाँचे में
हो जाएँ जो फिट
नहीं थे वैसे जिनसे
रहे डरता हर कोई ताउम्र
बचपनभी कहाँ भय खाता था उनसे
उनकी ठिठोली ने
थामे रखा था घर में अपने
खुशी की सौगातों को
खुशी की सौगातों को
हँसते-हँसाते मकान की हवा को
उन्होंने हँसी-ठहाके की बरसात से
बड़ा खुशनुमा बनाए रखा था
कभी-कभार का उनका
गुस्सा भी कम न था
एक पर नाराजगी
सब पर उपदेशों, सीखों का
कहर बन टूटता
एक की गलती पर
गुस्से की लपेट में सब एक साथ आ जाते
और उस समय वे किसी के नहीं होते
भेड़ की तरह सब
एक ही जबानी चाबुक से हाँक दिए जाते
फिर कुछ देर बाद ही
मनाने की जुगत में लग
हँसी-खिलखिलाहट की बरसात से
नाराज़ काले बदरा को भगा देते
दूर, सुदूर
बच्चों के लटके चेहरे उन्हें
कहाँ भाते थे
खाँचे से बाहर
अलग सांचे में ढले पिता
क्यों कठोरता
ज्यादा देर तक
ओढ़ नहीं पाते थे, ये
नहीं समझ सके बच्चे
क्या सव पिता ऐसे ही होते हैं
घोंघे की खोल में लिपटे
प्रश्नों की मार झेलता बचपन-कैशोर्य
पिता को कहाँ पहचान पाया है
माता के निकट, बहुत निकट
पिता को सदा अनजान पाया है।
संपर्क : १सी, डी ब्लॉक, सत्यभामा ग्रैंड, पूर्णिमा कॉम्पलेक्स के पास, कुसई, डोरंडा, राँची-८३४००२, झारखण्ड