कविता - ज़िन्दा रहने की तड़प -राहुल कुमार बोयल
ज़िन्दा रहने की तड़प
रात तुम्हारे लिए सोने की एक कोशिश भर है
मगर मेरे लिए
जिन्दा रहने की तड्प से भरी हुई एक चीख।
दिन तुम्हारे लिए रोजगार की तलाश से लेकर
मौज उड़ाने तक का एक मुमकिन सफ़र है
मगर मेरे लिए
खुद को जोड़ते-जोड़ते टूट जाने का एक गहरा सदमा।
तुम्हें मेरा पसीना भी तुम्हारे खुन से गाढ़ा मिलेगा।
सही और गलत के पैमाने तय करने वाले
मेरे भीतर लगी आग में जब नहीं सेंक पाते हाथ
तब तुम्हारी मुट्टियों में कसी हुई रेत
करके पानी की तरह इस्तेमाल
तुम्हारे हाथों ही बुझा देना चाहते हैं मुझे।
जब तक मेरे अल्फाज़ तुम्हारे कानों से होते हुए
तुम्हारे जिस्म के किसी हिस्से को छुए बगैर
तुम्हारी रुह पर चस्पा होंगे
तब शुरू करोगे तुम जन्दिा रहने की तैयारी
पर तब तक मैं मर चुका होऊंगा
क्यों कि अभी
रात तुम्हारे लिए सोने की एक कोशिश भर
हैऔर मेरे लिए
जन्दिा रहने की तड़प से भरी हुई एक चीख।
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