कविता - खत लिखना चाहता हूँ - शरद चन्द्र श्रीवास्तव
खत लिखना चाहता हूँ
कितना सुख देता है
एक वृक्ष होना,
वो भी तब,
जब सौंपना हो,
किसी को अपने गर्भ का फल,
जैसे,
सौंपती है एक माँ,
अपने गर्भस्थ शिशु को,
यह जानकर
बड़ा ताज्जुब होगा
कि-
'वृक्ष हमारे ही सहजात हैं'
हम दोनों की
निर्मिति में, शामिल हैं
हवा, पानी
और कोयला
कभी-कभी,
मन होता है,
लिख-
तुम्हे एक वजनदार खत
जिसे -
पढ़ा जाए आत्मा की उजास में,
यद्यपि -
मनुष्य होना
और -
लिखना
आज दोनों पर पाबन्दी है
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